Social Issues in India – Bharat ke Samajik Mudde

Bharat ke Samajik Mudde in Hindi – Social Issues in India!

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है और दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाली देश है।यहाँ के लोगों की संस्कृति अत्यंत विविधता पूर्ण और समृद्ध है। किन्तु यहाँ प्रचलित सामाजिक बुराइयाँ भारतीय समाज के लिए अभिशाप बन कर रही है।

एक ऐसे समाज में, जहाँ भारतीय स्त्रियां अन्तर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिताएँ में जीत हासिल कर रही हैं, खेल प्रतियोगिताएं में देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और यहाँ तक की देश की रक्षा में भी अपनी सक्रीय भूमिका निभा रही हैवही हज़ारों महिलाएं दहेज़ के नाम पर जलाकर मार डाली जा रही हैं और बाल शिशु के रूप में उनकी हत्या की जा रही हैं। हमारे समाज में प्रचलित अधिकाँश बुराइयाँ महिलाओं को ही अपना शिकार बनाती हैं।

सामाजिक मुद्दों जैसे सामाजिक समस्या, सामाजिक बुराई, और सामाजिक संघर्ष कि अवांछनीय शर्त यह है कि यह या तो पूरे समाज द्वारा या समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध किया है। यह एक अवांछित सामाजिक स्थिति है, जो समाज के लिए हानिकारक है।

भारत में लोगों को जाति व्यवस्था, बाल श्रम, अशिक्षा, लिंग असमानता, अंधविश्वास, धार्मिक संघर्ष, और कई रूप में सामाजिक मुद्दों की एक बड़ी संख्या का सामना करना पड़ रहा है।

Social Issues in India - Bharat ke Samajik Mudde

Table of Contents

प्रमुख सामाजिक मुद्दे ( Social Issues ): हमने भारत के प्रमुख सामाजिक मुद्दों की एक सूची तैयार की है। वे संक्षेप में नीचे चर्चा कर रहे हैं:-

  1. जाति व्यवस्था (Caste System)
  2. गरीबी या निर्धनता (Poverty)
  3. अकाल / भुखमरी (Starvation)
  4. बाल श्रम (Child Labour)
  5. बाल विवाह (Child Marriage)
  6. निरक्षरता / असाक्षरता / अशिक्षा (Illiteracy)
  7. महिलाओं की अशिक्षा (Women’s Illiteracy)
  8. दलित महिलाओं की स्थिति (Status of Dalit women)
  9. लिंग असमानता (Gender inequality)
  10. दहेज प्रथा (Dowry System)
  11. शराबखोरी (Alcoholism)
  12. अंधविश्वास (Blind Faith)
  13. स्वच्छता और साफ-सफाई (Cleanliness)
  14. भिक्षावृत्ति / भीख (Begging)
  15. बाल अपराध (child crime)

1. जाति व्यवस्था (Caste System as Social Issues in India)

जाति व्यवस्था जन्म के समय से व्यक्तियों के लिए वर्ग को परिभाषित करने या स्थिति बताने की एक प्रणाली है। भारत में जाति व्यवस्था मुख्य रूप से पेशे पर आधारित है। भारत सदियों से जाति व्यवस्था का शिकार रहा है। यह बहुत अफसोस कि बात है कि भारत एक जाति आधारित समाज है। जातिया आम तौर पर हिंदुओं से जोड़ी जाती हैं, लेकिन भारत में लगभग सभी धर्म इसके साथ प्रभावित हो गए हैं।

जाति व्यवस्था भारतीय समाज की सबसे बड़ी बुराईयो मे से एक है। भारतीय समाज की यह जाति व्यवस्था 3000 वर्ष पुरानी है। कई मायनों में, जाति व्यवस्था गंभीर सामाजिक भेदभाव और शोषण का सबसे अच्छा उदाहरण है। जाति व्यवस्था के कुछ भाग है: 1. ब्राह्मण 2. क्षत्रिय 3. वैष्णव 4. शूद्र।

निम्न जाति के लोगों को आम तौर पर अछूत कहा जाता है। संवैधानिक कानूनों के तहत इस तरह के भेदभाव को अवैध और कानून के तहत दंडनीय है। स्वतंत्र भारत के संविधान में भारत के हर नागरिक को समान अधिकार दिया हुआ है।  हालांकि, अब भी इस तरह की प्रणाली वर्तमान भारतीय समाज में मौजूद है।

2. गरीबी या निर्धनता (Poverty as Social Issues in India)

गरीबी या निर्धनता एक परिस्थिति है, जिसमें लोग जीवन के आधारभूत जरुरतों से महरुम रहते हैं, जैसे अपर्याप्त भोजन, कपड़े और छत। भारत में ज्यादातर लोग ठीक ढंग से दो वक्त की रोटी नही हासिल कर सकते, वो सड़क किनारे सोते हैं और गंदे कपड़े पहनते हैं। वो उचित स्वस्थ, पोषण, दवा और दूसरी जरुरी चीजें नहीं पाते हैं।

शहरी जनसंख्या में बढ़ौतरी के कारण शहरी भारत में गरीबी बढ़ी है, क्योंकि नौकरी और धन संबंधी क्रियाओं के लिये ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों और नगरों की ओर पलायन कर रहें है। लगभग 8 करोड़ लोगों की आय गरीबी रेखा से नीचे है और 4.5 करोड़ शहरी लोग गरीबी सीमारेखा पर हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले अधिकतर लोग अशिक्षित होते हैं।

भारत में गरीबी विशाल स्तर पर फैली हुई स्थिति है। स्वतंत्रता के समय से, गरीबी एक प्रचलित चिंता का विषय है। ये 21वीं शताब्दी है और गरीबी आज भी देश में लगातार खतरा के रुप में बनी हुई है। भारत ऐसा देश है जहाँ अमीर और गरीब के बीच बहुत व्यापक असमानता है।

इसे ध्यान में रखा जाना चाहिये कि यद्यपि पिछले दो दशकों में अर्थव्यवस्था में प्रगति के कुछ लक्षण दिखाये दिये हैं, ये प्रगति विभिन्न क्षेत्रों या भागों में असमान हैं। वृद्धि दर बिहार और उत्तर प्रदेश की तुलना में गुजरात और दिल्ली में ऊँची हैं। कुछ ठोस कदमों उठाये जाने के बावजूद गरीबी को घटाने के संदर्भ में कोई भी संतोषजनक परिणाम नहीं दिखाई देता है।

3. अकाल / भुखमरी (Starvation as Social Issues in India)

भुखमरी कैलोरी ऊर्जा खपत में कमी की स्थिति को प्रदर्शित करती है, ये कुपोषण का एक गंभीर रुप है जिसकी यदि देखभाल नहीं की गयी तो अन्ततः मौत की ओर ले जाता है।

ऐतिहासिक रुप से, भुखमरी भारत से अलग विभिन्न मानव संस्कृतियों में स्थिर हो चुकी है। भुखमरी किसी भी देश में बहुत से कारणों से जन्म लेती है जैसे युद्ध, अकाल, अमीर-गरीब के बीच असमानता आदि।

कुपोषण की स्थिति जैसे बच्चों को होने वाली बीमारी क्वाशियोरकॉर और सूखा रोग, अकाल या भुखमरी के कारण उत्पन्न गंभीर समस्या हैं। सामान्यतः, क्वाशियोरकॉर और सूखा रोग उन परिस्थियों में होता है जब लोग ऐसा आहार लेते हैं जिसमें पोषक तत्वों (प्रोटीन, मिनरल्स, कार्बोहाइड्रेड, वसा और फाइबर) की कमी हो। भारत के संदर्भ में ये कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि ये भोजन प्रणाली के वितरण की दोषपूर्ण व्यवस्था है।

4. बाल श्रम (Child Labour as Social Issues in India)

बाल श्रम से आशय बच्चों द्वारा किसी भी काम को बिना किसी प्रकार का वेतन दिये कार्य कराना है। बाल-श्रम का मतलब ऐसे कार्य से है जिस में की कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है। इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संघटनों ने शोषित करने वाली माना है।

अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारों, श्रम अधिकार और बच्चों के अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमे जनविवाद प्रवेश कर गया।

बाल श्रम केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है। जहाँ तक भारत का संबंध है, ये मुद्दा दोषपूर्ण है, क्योंकि ऐतिहासिक काल से यहाँ बच्चें अपने माता-पिता के साथ उनकी खेतों और अन्य कार्यों में मदद करते हैं। अधिक जनसंख्या, अशिक्षा, गरीबी, ऋण-जाल आदि सामान्य कारण इस मुद्दे के प्रमुख सहायक हैं।

बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी बच्चों को कपड़ों का निर्माण करने वाली कम्पनियों में काम करने के लिये रखती है और कम वेतन देती है जो बिल्कुल ही अनैतिक है। बाल श्रम वैश्विक चिन्ता का विषय है जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी व्याप्त है। बच्चों का अवैध व्यापार, गरीबी का उन्मूलन, निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा और जीवन के बुनियादी मानक बहुत हद तक इस समस्या को बढ़ने से रोक सकते हैं।

विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष गरीबी के उन्मूलन के लिये विकासशील देशों को ऋण प्रदान करके मदद करता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनी और अन्य संस्थाओं के द्वारा शोषण को रोकने के लिये श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करना अनिवार्य है।

5. बाल विवाह (Child Marriage as Social Issues in India)

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है। एक राष्ट्र जो अगली महाशक्ति के रुप में उभरता हुआ माना जा रहा है, उसके लिये ये एक परेशान करने वाली वास्तविकता है कि बाल विवाह जैसी बुराई अभी भी जारी है।

शादी को दो परिपक्व (बालिग) व्यक्तियों की आपसी सहमति से बना पवित्र मिलन माना जाता है, जो पूरे जीवनभर के लिये एक-दूसरे की सभी जिम्मेदारियों को स्वीकार करने के लिये तैयार होते हैं। इस सन्दर्भ के संबंध में, बाल विवाह का होना एक अनुचित रिवाज माना जाता है। तथ्य ये स्पष्ट करते हैं कि भारत में ये अभी भी प्रचलन में है।

बाल-विवाह बचपन की मासूमियत की हत्या है। भारतीय संविधान में बाल-विवाह के खिलाफ कई कानूनों और अधिनियमों का निर्माण किया गया है। बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 पहला कानून था जिसे जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू किया गया था। ये अधिनियम बालिग लड़के और लड़कियों की उम्र को परिभाषित करता है।

इसके साथ ही नाबालिग के साथ यौन संबंध भारतीय दंड संहिता (इण्डियन पैनल कोड) की धारा 376 के अन्तर्गत एक दण्डनीय अपराध है। इस मुख्य परिवर्तन के लिये उचित मीडिया संवेदीकरण की आवश्यकता है। वहीं दूसरी तरफ, ये माना गया है कि बाल-विवाह को जड़ से खत्म करने, वास्तविक प्रयासों, सख्ती के कानून लागू करने के साथ ही अभी भी लगभग 50 साल लगेंगे तब जाकर कहीं परिदृश्य को बदला जा सकता है।

6. निरक्षरता / असाक्षरता / अशिक्षा (Illiteracy as Social Issues in India)

निरक्षरता का सामान्य अर्थ है: अक्षरों की पहचान तक न होना । निरक्षर व्यक्ति के लिए तो ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ होता है । जो व्यक्ति पढ़ना-लिखना एकदम नहीं जानता, अपना नाम तक नहीं पढ़-लिख सकता, सामने लिखी संख्या तक को नहीं पहचान सकता है उसे निरक्षर कहा जाता है ।

निरक्षर व्यक्ति न तो संसार को जान सकता है और न ही अपने साथ होने वाले लिखित व्यवहार को समझ सकता है, इसीलिए निरक्षरता को अभिशाप माना जाता है । आज के अर्थात् इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने वाले ज्ञान-विज्ञान के इस प्रगतिशील युग में भी कोई व्यक्ति या देश निरक्षर हो तो इसे एक त्रासदी के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु यह तथ्य सत्य है कि स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विस्तार हो जाने पर भी भारत में निरक्षरों तथा अनपढों की बहुत अधिक संख्या है ।

इस बात को भली-भांति जानते हुए कि निरक्षर व्यक्ति को तरह-तरह की हानियां उठानी पड़ती हैं, उन्हें कई तरह की विषमताओं का शिकार होना पड़ता है, वे लोग साक्षर बनने का प्रयास नहीं करते हैं । यदि हम प्रगति तथा विकास-कार्यों से प्राप्त हो सकने वाले सकल लाभ को प्राप्त करना चाहते हैं तो हम सबको साक्षर बनना होगा अर्थात् निरक्षरता को समाप्त करना होगा ।

व्यक्तिगत स्तर पर भी निरक्षर व्यक्ति को कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ता है । वह न तो किसी को स्वयं कुशल-क्षेम जानने वाला पत्र ही लिख सकता है और न ही किसी से प्राप्त पत्र को पढ़ ही सकता है । निरक्षर व्यक्ति न तो कहीं मनीआर्डर भेज सकता है और न ही कहीं से आया मनीआर्डर अपने हस्ताक्षरों से प्राप्त कर सकता है, ऐसी दोनों स्थितियों में वह ठगा जा सकता है।

देहाती निरक्षरों से तो अंगूठे लगवाकर जमींदार व महाजन उनकी जमीनों के टुकड़े तक हड़प कर चुके हैं । ऐसा अनेक बार होता देखा गया है, इसीलिए निरक्षरता को अभिशाप माना जाता है । इस निरक्षरता के अभिशाप को मिटाने के लिए आजकल साक्षरता का अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है।

महानगरों, नगरों, कस्बों व देहातों में लोगों को साक्षर बनाने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । अधिकतर निरक्षर लोग मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग होते हैं इसलिए उनके लिए सुबह-शाम घरों के पास पढ़ाई की व्यवस्था की जाती है।

गृहणियों के लिए दोपहर के खाली समय में पढ़-लिख पाने की मुफ्त व्यवस्था की जाती है । इनके लिए पुस्तक, कापी की भी मुफ्त व्यवस्था की जाती है । यहाँ तक कि घर-घर जाकर भी साक्षर बनाने के अभियान चलाये जा रहे हैं । इन सबसे लाभ उठाकर हम निरक्षरता के अभिशाप से मुक्ति पा सकते हैं । साक्षर होना या साक्षर बनाना आज के युग की विशेष आवश्यकता है।

7. महिलाओं की अशिक्षा (Women’s Illiteracy as Social Issues in India)

आज इक्कीसवीं सदी में महिलाओं ने समाज के लगभग हर क्षेत्र में सफलता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई है।किन्तु वावजूद अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ वह अवंछिय समझी जाती है और परिवार में भी उसे बराबरी का दर्ज़ा नहीं दिया जाता है।

शिशु मृत्यु में भले ही गिरावट आ रही हो किन्तु आज भी हमारे देश में हज़ारों ऐसे लड़कियां हैं, जिन्हे स्कूल नहीं भेजा जाता है, उनसे हर तरह के घरेलु काम करवाए जाते हैं और काम कम उम्र में ही उनके विवाह कर दिए जाते हैं।

उन्हें सम्मान के साथ जीने का उचित अवसर नहीं दिया जाता है। उन्हें एक लोकतांत्रिक देश में एक नागरिक के लिए आवश्यक बुनियादी शिक्षा से भी वंचित रखा जा रहा है। अशिक्षित होने के कारण वे पुरुष आधिपत्य के समक्ष गुलामों जैसी हालात में जीने के लिए अभिशप्त हैं।

8. दलित महिलाओं की स्थिति (Status of Dalit women as Social Issues in India)

अशिक्षित होना तो वैसे ही बुरी बात हैं किन्तु जब स्त्री अक्षित हो और वह दलित जाति की हो तो उसकी और भी दुर्दशा होती हैं। हालाकिं आज़ादी के बाद  हमारे संविधान द्वारा तथा THE UNTOUCHABILITY (OFFENCES) ACT, 1955 द्वारा अस्पृश्यता को गैर कानूनी बना दिया गया है किन्तु आज भी देश के कई भागों में यह सामाजिक बुराई जारी हैं।

गाँव में अनेकों दलित महिलाओं केवल एक घड़ा पीने का पानी लाने के लिए भी मीलों दूर जा पड़ता है क्योंकि अछूत माने जाने के कारण वे गाँव के कुवें से पानी नहीं ले सकती हैं।

जब महिलाएँ शिक्षित होंगी तभी वे जागरूक हो सकेंगी और अपने अधिकारों के लड़ सकेंगी।बिना हर किसी को सामाजिक न्याय उपलब्ध कराये हम अपने आपको प्रगतिशील नहीं कह सकते और न केवल दुनियां की निगाह में बल्कि स्वयं अपनी निगाह में पिछड़े ही बने रहेंगे। हमारे देश की जो शिक्षित और जागरूक महिलाएँ हैं उन्हें आगे बढ़कर सामने आना चाहिए और अपनी वंचित और दमित बहनों के बेहतर भविष्य के लिए ठोस पहल करनी चाहिए।

9. लिंग असमानता (Gender Inequality as Social Issues in India)

हम 21वीं शताब्दी के भारतीय होने पर गर्व करते हैं, जो एक बेटा पैदा होने पर खुशी का जश्न मनाते हैं और यदि एक बेटी का जन्म हो जाये तो शान्त हो जाते हैं यहाँ तक कि कोई भी जश्न नहीं मनाने का नियम बनाया गया हैं।

लड़के के लिये इतना ज्यादा प्यार कि लड़कों के जन्म की चाह में हम प्राचीन काल से ही लड़कियों को जन्म के समय या जन्म से पहले ही मारते आ रहे हैं, यदि सौभाग्य से वो नहीं मारी जाती तो हम जीवनभर उनके साथ भेदभाव के अनेक तरीके ढूँढ लेते हैं।

हांलाकि, हमारे धार्मिक विचार औरत को देवी का स्वरुप मानते हैं लेकिन हम उसे एक इंसान के रुप में पहचानने से ही मना कर देते हैं। हम देवी की पूजा करते हैं, पर लड़कियों का शोषण करते हैं। जहाँ तक कि महिलाओं के संबंध में हमारे दृष्टिकोण का सवाल हैं तो हम दोहरे-मानकों का एक ऐसा समाज हैं जहाँ हमारे विचार और उपदेश हमारे कार्यों से अलग हैं।

10. दहेज प्रथा (Dowry System as Social Issues in India)

सामान्य दहेज उसे कहते है जो एक पुरुष तथा कन्या के शादी में कन्या के माँ बाप के द्वारा दिया जाता है लेकिन अब कलंकित कर रही है तथा वर पक्ष के लोग टी. वी., फ्रिज, कार इत्यादि की मांग कर रहे है यदि लड़की का बाप यह सब देने में असमर्थ हो तो लड़की की शादी रूक जाती है या शादी भी हो जाती है तो लडकी को तंग किया जाता है।

दहेज़ की माँग करना हमारे देश के क़ानून के विरुद्ध हैं, किन्तु इसके बावजूद अनेक भारतीय युवक अपने माता पिता को विवाह में भारी भरकम दहेज़ माँगने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

अनेक शिक्षित युवक भी ऐसे हैं जो अच्छी तरह से जानते हैं कि यह एक सामाजिक बुराई हैं किन्तु उनमें इतना साहस नहीं होता है कि वे दहेज़ के खिलाफ विरोध की आवाज उठा सकें। बड़ा दहेज़ ना लाने वाली बहनों का इनके ससुराल पक्ष द्वारा उत्पीड़न केवल गाँव में ही नहीं बल्कि शहरों में भी आम बात हो गयी हैं।

11. शराबखोरी (Alcoholism as Social Issues in India)

शराबखोरी वह स्थिति है, जब व्यक्ति शराब का अत्यधिक सेवन करता है तथा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से पीड़ित होने के बावजूद लगातार शराब पीता है। व्यक्ति के शराब पीने की आदत कई तरह की समस्याओं को पैदा करती है, लेकिन कई बार शारीरिक आदते समस्याओं को पैदा नहीं करती है।

यह समस्याएं शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव जैसे कि शराब विषाक्तता, यकृत (लीवर) की सिरोसिस, कार्य में असमर्थता और मेलजोल तथा विनाशकारी व्यवहार (हिंसा और बर्बरता) जैसी बहुत सारी हानिकारक स्थितियों को पैदा करती हैं।

12. अंधविश्वास (Blind Faith as Social Issues in India)

आदिम मनुष्य अनेक क्रियाओं और घटनाओं के कारणों को नहीं जान पाता था। वह अज्ञानवश समझता था कि इनके पीछे कोई अदृश्य शक्ति है। वर्षा, बिजली, रोग, भूकंप, वृक्षपात, विपत्ति आदि अज्ञात तथा अज्ञेय देव, भूत, प्रेत और पिशाचों के प्रकोप के परिणाम माने जाते थे। ज्ञान का प्रकाश हो जाने पर भी ऐसे विचार विलीन नहीं हुए, प्रत्युत ये अंधविश्वास माने जाने लगे।

आदिकाल में मनुष्य का क्रिया क्षेत्र संकुचित था इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी अल्प थी। ज्यों ज्यों मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार हुआ त्यों-त्यों अंधविश्वासों का जाल भी फैलता गया और इनके अनेक भेद-प्रभेद हो गए। अंधविश्वास सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं। विज्ञान के प्रकाश में भी ये छिपे रहते हैं। अभी तक इनका सर्वथा उच्द्वेद नहीं हुआ है। 

13. स्वच्छता और साफसफाई (Cleanliness as Social Issues in India)

स्वच्छता एक ऐसा कार्य नहीं है जो हमें दबाव में करना चाहिये। ये एक अच्छी आदत और स्वस्थ तरीका है हमारे अच्छे स्वस्थ जीवन के लिये। अच्छे स्वास्थ्य के लिये सभी प्रकार की स्वच्छता बहुत जरुरी है चाहे वो व्यक्तिगत हो, अपने आसपास की, पर्यावरण की, पालतु जानवरों की या काम करने की जगह  (स्कूल, कॉलेज आदि) हो।

हम सभी को निहायत जागरुक होना चाहिये कि कैसे अपने रोजमर्रा के जीवन में स्वच्छता को बनाये रखना है। अपनी आदत में साफ-सफाई को शामिल करना बहुत आसान है। हमें स्वच्छता से कभी समझौता नहीं करना चाहिये, ये जीवन में पानी और खाने की तरह ही आवश्यक है। इसमें बचपन से ही कुशल होना चाहिये जिसकी शुरुआत केवल हर अभिभावक के द्वारा हो सकती है पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है के रुप में। 

14. भिक्षावृत्ति / भीख (Begging as Social Issues in India)

हाल के सालों में भारत की आर्थिक विकास दर तेजी से बढ़ी है। लेकिन भिखारियों का मुद्दा अभी भी सबसे बड़ा है। भारत में गरीबी है लेकिन भीख संगठित रूप से मांगी जाती है। एरिया बंटा रहता है, कोई दूसरा उस क्षेत्र में भीख नहीं मांग सकता। हर भिखारी के ऊपर उसका सरगना होता है जोकि भीख में मिले पैसे में से एक हिस्सा लेता है।

हाल के सालों में भारत की आर्थिक विकास दर तेजी से बढ़ी है। लेकिन भिखारियों का मुद्दा अभी भी सबसे बड़ा है। भारत में गरीबी है लेकिन भीख संगठित रूप से मांगी जाती है। एरिया बंटा रहता है, कोई दूसरा उस क्षेत्र में भीख नहीं मांग सकता। हर भिखारी के ऊपर उसका सरगना होता है जोकि भीख में मिले पैसे में से एक हिस्सा लेता है।

इसीलिए भिखारियों को लेकर कोई भी अभियान सफल नहीं हो पाता है क्योंकि ऐसी आदत पड़ चुकी है कि कोई काम करना ही नहीं चाहता। कहते भी हैं कि जब बिना किसी काम धाम के सुबह से शाम तक हजार, दो हजार रुपये मिल जाते हैं तो काम कौन करे। काम करने पर इतना पैसा थोड़े ही मिलेगा। 

15. बाल अपराध (child crime as Social Issues in India)

जब किसी बच्चें द्वारा कोई कानून-विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे किशोर अपराध या बाल अपराध कहते हैं। कानूनी दृष्टिकोण से बाल अपराध 8 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आया के बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य है जिसे कानूनी कार्यवाही के लिये बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है। भारत में बाल न्याय अधिनियम 1986 (संशोधित 2000) के अनुसर 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों एवं 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियों के अपराध करने पर बाल अपराधी की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है।

बाल अपराध की अधिकतम आयु सीमा अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग है। इस आधार पर किसी भी राज्य द्वारा निर्धारित आयु सीमा के अन्तर्गत बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य बाल अपराध है। केवल आयु ही बाल अपराध को निर्धारित नहीं करती वरन् इसमें अपराध की गंभीरता भी महत्वपूर्ण पक्ष है।

7 से 16 वर्ष का लड़का तथा 7 से 18 वर्ष की लड़की द्वारा कोई भी ऐसा अपराध न किया गया हो जिसके लिए राज्य मृत्यु दण्ड अथवा आजीवन कारावास देता है जैसे हत्या, देशद्रोह, घातक आक्रमण आदि तो वह बाल अपराधी माना जायेगा।

अंतिम शब्द:

अतः हम सब मिल कर इन सभी सामाजिक मुद्दे के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी और भारत को एक शशक्त देश बनाना होगा।

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